अगर आप नही जानते कि Operating System क्या है यह कैसे काम करता है इसके कितने प्रकार होते है तो आज आप बिलकुल सही जगह पर है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको What is Operating system in hindi कि पूरी जानकारी मिलने वाली है। और अगर आप सच में ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो आपको यह पोस्ट पूरा पढ़ना चाहिए जिससे आपको एक दम सही जानकारी प्राप्त हो सके।
जिस तरह हम हमारे पास दिमाग होता है और हम जो भी काम करते है वह हमारे दिमाग द्वारा दिया जाने वाला निर्देश होता है तब हम वह काम कर पाते है ठीक उसी तरह जब हम किसी मशीन को चलाते है तो उसे भी चलाने के लिए निर्देशों की आवश्कयता होती है और वह ऑपरेटिंग सिस्टम से संभव हो पाता है।
यानि यहाँ कहने का अर्थ है जिस तरह हमारे शरीर के लिए हमारा दिमाग होता है उसी तरह एक डिजिटल मशीन के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम होता है।
आप यह जो आर्टिकल पढ़ रहे है आप इसे या तो अपने स्मार्टफोन में पढ़ रहे होंगे या अपने कंप्यूटर के माध्यम से इसे पढ़ रहे होंगे। तो यदि आप यह पोस्ट अपने स्मार्टफोन में पढ़ रहे है तो आपके फ़ोन में Android Operating System (OS) या ios Operating System होगा। और अगर आप इसे कंप्यूटर में पढ़ रहे है तो आप जरूर इसे विंडोज, लिनक्स, या फिर मैक ऑपरेटिंग सिस्टम पर ही पढ़ रहे होंगे।
मेरे अनुसार अब तक आपको थोड़ा अंदाजा तो लग ही गया होगा की आखिर ऑपरेटिंग सिस्टम क्या होता है और कैसे इस्तेमाल में आता है। यहाँ अगर मैं आपको एक सरल परिभाषा के माध्यम से समझाऊ तो एक व्यक्ति द्वारा किसी डिजिटल मशीन को नियंत्रित करने के लिए जिसके माध्यम से निर्देश दिए जाते है वह ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
अभी तक मेने आपको यंहा केवल ऑपरेटिंग सिस्टम का एक छोटा सा प्रस्तावना दिया है जिससे आपको थोड़ा बहुत अंदाजा लग चूका होगा तो चलिए अब हम ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है के बारे में थोड़ा विस्तार से जान लेते है ताकि आपके Operating System से जुड़े जितने भी सवाल है उन सभी के जवाब आपको इस आर्टिकल में मिल जाये।
ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है – Operating System in Hindi

ऑपरेटिंग सिस्टम ( Operating System) को Short Form में OS कहा जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम एक कम्प्यूटर द्वारा बनाया गया प्रोग्राम होता है जो किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए निर्देशों को कम्प्यूटर में उपस्तिथ सभी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को निर्देशित करता है। दूसरे शब्दों में आप ऑपरेटिंग सिस्टम को कंप्यूटर का दिमाग भी कह सकते है ।
यहाँ अगर एक कंप्यूटर में OS न हो तो हम कंप्यूटर या किसी भी डिजिटल मशीन का उपयोग करने में असमर्थ रहेंगे इसलिए हमें OS की आवश्यकता होती है अब तक आपने ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है सीख लिया है अब हम ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में और विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
ऑपरेटिंग सिस्टम किसने बनाया

पहला ऑपरेटिंग सिस्टम Gary Kildall द्वारा बनाया गया था यह एक अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक थे।
ऑपरेटिंग सिस्टम की कीमत कितनी होती है
यहाँ अगर आपसे ऑपरेटिंग सिस्टम की कीमत की बात करू तो अलग अलग ऑपरेटिंग सिस्टम की कीमत अलग अलग होती हैं। यहाँ 500 रुपये से लेकर 9000 रूपए तक एक ऑपरेटिंग सिस्टम की कीमत हो सकती है । आज के समय में कम्प्यूटर के लिए सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम Microsoft Windows है
ऑपरेटिंग सिस्टम की लिस्ट
अगर मैं आपसे OS लिस्ट की बात करू तो मौजूदा वक्त में बहुत सारे ऑपरेटिंग सिस्टम है और हर ऑपरेटिंग सिस्टम अपने काम के अनुसार बनाया गया है पर सबसे ज्यादा और आसानी से उपयोग किया जाने वाला कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम Microsoft का Windows ही है पर यंहा आपको कुछ ही ऑपरेटिंग सिस्टम की लिस्ट दूंगा ताकि आपको थोड़ा ज्ञान मिल सके।
- Microsoft Windows
- Linux
- Unix
- Android OS
- BlackberyOS
- Apple IOS
- Apple MacOS
- Solaris
- FreeBSD
- Fedora
- Chrome OS
- CentOS
- Debian
- Ubuntu
- Deepin
ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य
अलग अलग ऑपरेटिंग सिस्टम के अलग अलग कार्य होते है परन्तु हम यहाँ एक बेसिक कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्यो के बारे में बात करेंगे। जब भी हम किसी ऑपरेटिंग सिस्टम को चालू करते है तब उसका सबसे पहला काम होता है RAM में खुद को लोड करना इसके अलावा मेने अलग अलग कार्यो के बारे में निचे दिया हुआ आप वहां से ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्यो को विस्तारपूर्वक पढ़ सकते है
Memory Analysis
यहाँ अगर आपसे मेमोरी की बात करू तो दो तरह की मेमोरी होती है एक प्राइमरी मेमोरी और दूसरी सेकेंडरी मेमोरी इस दोनों मेमोरी को OS Analysis करके मैनेज करता है ताकि OS को दूसरे Software को निर्देश देने में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को देखना न पड़े।
यहाँ Primary Memory से अर्थ है RAM का। RAM का कार्य ही सबसे प्रमुख कार्य होता है यह काफी Fast गति से कार्य को संपन्न करता है एक बार में एक या एक से अधिक कार्य को पूरी तरह से संपन्न करने में RAM का सबसे बड़ा हिस्सा होता है।
Memory Analysis में OS ये सभी कार्य को पूरा करता है
- सबसे पहले OS यह पता लगता है की किस प्रोग्राम को रन करने में कितना प्रतिशत भाग को उपयोग में लिया जायेगा और कितना प्रतिशत भाग फ्री रहेगा।
- एक या एक से अधिक कार्य को पूरा करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम यह नियंत्रण देता है की किस सॉफ्टवेयर को रन करने के लिए मेमोरी का कितना हिस्सा दिया जाए और कितना फ्री रखा जाए।
- जब कोई भी सॉफ्टवेयर रन होता है तब वह OS से मेमोरी मांगता है और OS उसे मेमोरी दे देता है जैसे ही सॉफ्टवेयर का काम पूर्ण हो जाता है तब OS वापस अपनी दी हुई मेमोरी को वापस ले लेता है जिससे दूसरे सॉफ्टवेयर को रन करने के लिए पर्याप्त मेमोरी दी जा सके।
Processing
कोई भी ऑपरेटिंग सिस्टम किसी भी सिस्टम में लगे हुए प्रोसेसर का उपयोग करके अपने सभी कामो को प्रोसेस कर पाता है ऐसे में जो सिस्टम में प्रोसेसर लगा हुआ है वह तब ही काम कर पायेगा जब कोई OS उसे किसी भी दूसरे प्रोग्राम को रन करने के निर्देश देगा। यहाँ पर आपके सिस्टम का प्रोसेसर जितने ज्यादा कोर का होता है उतना OS अच्छे से और तीव्र गति से प्रोग्राम के कार्य को संपन्न करता है।
किसी भी OS का मुख्य कार्य यही होता है की यदि कोई प्रोग्राम रन करना है तो सबसे पहले OS उस प्रोग्राम के लिए प्रोसेसर का कुछ हिस्सा देता है जिससे की वह प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर अच्छे से काम कर सके ।
और उसी बीच यदि एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स को रन करवाना है तब आपके कंप्यूटर या किसी भी मशीन का OS (Operating System) यह निर्णय लेता है की किस प्रोग्राम को प्रोसेसर का कितना हिस्सा उपयोग के लिए देना है और कितना हिस्सा दूसरे प्रोग्राम को उपयोग के लिए रखना है और OS प्रोसेसर का कुछ कुछ हिस्सा फ्री भी रखता है जिससे की अगर रन हुए प्रोग्राम्स को कोई अतिरिक्त प्रोसेसिंग यूनिट की आवशयकता पड़ी तो उपलब्ध करवा सके।
जब सभी प्रोग्राम अपने अपने सभी कार्यो को परिपूर्ण कर लेते है तब OS उपयोग जितने भी कार्यो में लगे हुए है सभी प्रोसेसिंग यूनिट को फ्री कर देता है ताकि और कोई दूसरा प्रोग्राम रन करने में OS को धीमी गति का सामना न करना पड़े।
Hardware Management
किसी भी सिस्टम में कोई भी हार्डवेयर को कनेक्ट किया जाता है तो उन हार्डवेयर को मैनेज करने के लिए ड्राइवर्स को इनस्टॉल करना पड़ता है जिससे की एक OS हार्डवेयर का सिस्टम के साथ सम्बन्ध जोड़ सके और उन्हें OS अच्छे से निर्देश दे सके। सभी इनस्टॉल ड्राइवर्स को एक OS ही नियंत्रित करता है ।
- किसी सिस्टम में यदि बाहरी हार्डवेयर जैसे की प्रिंटर को कनेक्ट किया जाता है और उस प्रिंटर से कोई प्रिंट दिया जाता है तब सबसे पहले OS उस प्रिंटर के ड्राइवर को खोजता है ताकि OS निर्देश दे सके और प्रिंटर अपना काम संपन्न कर सके।
- इस काम में प्रोसेसर की भी भूमिका होती है तभी यह काम अच्छे तरीके से संपन्न हो पता है और जब यह पूरी प्रोसेस ख़त्म हो जाती है तब OS अपने सभी नियंत्रण को बंद कर देता है ।
File Management & Security
किसी भी OS का एक सिस्टम में Files को मैनेज करने का भी काम होता है क्युकी हम जो भी कार्य करते है उसका एक फाइल बन जाता है। और हर फाइल का एक अलग फॉर्मेट होता है उसी के हिसाब से हम उस फाइल को जब भी ओपन करते है तब वह फाइल जिस भी फॉर्मेट की होती है उसी सॉफ्टवेयर की मदद से लोड होती है यह निर्देश देने का काम भी OS द्वारा ही किया जाता है।
OS का File Management
जब भी कोई फाइल लोड होती है तो सॉफ्टवेयर को OS द्वारा ही निर्देश दिया जाता है की उसे किस सॉफ्टवेयर में लोड होना है।
यहाँ मैं आपको एक उदहारण के द्वारा समझाऊ तो आपको एक PDF फाइल ओपन करना है जो की Adobe Reader में ही लोड होती है तो फाइल को ओपन करते समय Adobe Reader को OS द्वारा ही निर्देश दिया जाता है की वह फाइल सही से लोड हो सके और जो भी User है उसका सही से उपयोग कर पाए।
OS का Security Management
जब हम कम्प्यूटर में इंटरनेट का इस्तेमाल करते है और कुछ डाउनलोड करते है तब हमारे कम्प्यूटर में कुछ ऐसी फाइल्स भी डाउनलोड हो जाती है जो की कर्रप्ट या फिर वायरस होती है यह भी एक OS द्वारा ही पहचाना जाता है और साथ ही OS यह भी पुष्टि करता है की वह फाइल हमारे सिस्टम के लिए उपयोगी है या नहीं क्युकी अगर वह फाइल एक वायरस हुई तो पुरे सिस्टम को ख़राब भी कर सकती है।
Performance Management
एक OS द्वारा यह भी समय समय पर चेक किया जाता है की वह जो भी प्रोग्राम रन करता है वह लोड होने में कितना समय लगा रहा है क्युकी अगर कोई भी प्रोग्राम जयादा समय लगा रहा है तो OS सभी फालतू प्रोग्राम को बंद करता है और जो लेटेस्ट प्रोग्राम है उसे जल्दी लोड होने में मदद करता है तो यह भी एक OS द्वारा किया जाने वाला बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है।
File Recovery
यदि किसी भी प्रोग्राम या फिर फाइल में किसी तरह की त्रुटि दिखाई जाती है तब OS उस फाइल को Recover करने का प्रयास करता है और यदि OS फ़ाइल Recover करने में असमर्थ होता है तब वह निर्देश देता है की इस फाइल में या प्रोग्राम में यह त्रुटि है इसे इस तरह ठीक किया जाएगा। जिससे एक User को यह मालूम चल जाए की Error किस कारण उत्पन्न हो रहा है। तो यह भी एक OS का सबसे बढ़िया किया जाने वाला कार्य है।
कोई भी व्यक्ति अगर किसी भी चीज़ का अविष्कार करता है तो अपना काम आसान बनाने के लिए करता है औरअब से कम्प्यूटर और OS जैसी डिजिटल चीज़े बनी तब से इन चीज़ो ने एक व्यक्ति का काम आसान कर दिया है वरना आज हम जो भी डिजिटल चीज़े उपयोग करते है इन OS की वजह से ही संभव हुआ है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार
दोस्तों जिस तरह अलग अलग चीज़ो के प्रकार होते है उसी तरह ऑपरेटिंग सिस्टम के भी प्रकार होते है और आज के समय में कोई भी ऐसा कार्यक्षेत्र नहीं है जहा डिजिटल तरह से कार्य न हो रहा हो जैसे हम पहले के समय में यात्रा करते थे तब हमें बस ट्रैन सभी का टिकट खिड़की पर जाकर बनवाना पड़ता था परन्तु आज के समय में हम वही काम ऑनलाइन कर सकते है तो यह तब ही संभव हो पाया तब हम ऑपरेटिंग सिस्टम को बना पाए।
परन्तु यहाँ जिस भी क्षेत्र में एक डिजिटल मशीन का उपयोग किया जाता है और अलग अलग डिजिटल मशीनों का ऑपरेटिंग सिस्टम अलग अलग तरह से काम करता है और सभी ऑपरेटिंग सिस्टम अलग अलग होते है
ऑपरेटिंग सिस्टम के आठ तरह के प्रकार होते है और सभी ऑपरेटिंग सिस्टम्स के किन किन कार्यो के लिए उपयोग में लाया जाता है हम अभी थोड़ा विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे –
- Simple Batch System
- Multiprogramming Batch System
- Multiprocessor System
- Desktop System
- Distributed Operating System
- Clustered System
- Realtime Operating System
- Handheld System
Simple Batch System
इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम के नाम से ही परिभाषित किया जा सकता है यह साधारण युक्ति के अनुसार काम करते थे।
पहले के समय में तकनिकी इतनी विकसित न होने के कारन प्रोसेस काफी अलग तरह से हुआ करता था इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम में जो व्यक्ति कंप्यूटर उपयोग कर रहा है और ऑपरेटिंग सिस्टम के बिच सीधा कनेक्शन नहीं हुआ करता था ।
इस तरह के सिस्टम में कार्य करने के लिए पहले यूजर को ऑपरेटिंग सिस्टम को कार्ड पर लिखित रूप में टास्क को जमा करवाना होता था इसी तरह एक कंप्यूटर यूजर एक इनपुट डिवाइस पर बहुत सारे टास्क को सबमिट करता था।
उसके बाद यह ऑपरेटिंग सिस्टम सभी लिखित टास्क को एक Batch के रूप में अपने पास एकत्रित रखता था जिससे की इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम के पास सभी टास्क उपलब्ध हो जाने के बाद यह ऑपरेटिंग सिस्टम Batch के रूप में सभी Task के आउटपुट परिणाम को दूसरे बाहरी आउटपुट स्टोरेज में अपने पास पूरा करके रखता था यह प्रोसेस थोड़ी लम्बी चलती थी।
यहाँ यह प्रोसेस एक Batch के रूप में होने से इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम को Batch ऑपरेटिंग सिस्टम कहा जा था।
Simple Batch Systems के Advantages
- इसमें एक यूजर और कम्प्यूटर के बीच में किसी भी तरह का संवाद नहीं होता था।
- और सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए किसी तरह का दूसरा सिस्टम मौजूद नहीं हुआ करता था।
Multiprogramming Batch System
इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम में कम्प्यूटर एक ही समय में 2 या 2 से अधिक टास्क या जॉब को पूरा किया करता था जिससे इसका नाम मल्टीप्रोग्रॅमिंग बैच सिस्टम पड़ा।
इस तरह के सिस्टम में किसी भी एक टास्क को लेता था और मेमोरी में उसे प्रोसेस करना शुरू कर देता था जिससे की वह एक साथ प्रोसेस कर पाए।
इस तरह के सिस्टम में I/O को दूसरी जॉब या टास्क में स्वीकत करना होता था जबकि पहला जॉब या टास्क प्रोसेस में ही रहता था ऐसे में सभी जॉब के पुरे होने की प्रोसेस में CPU और ऑपरेटिंग सिस्टम हमेशा व्यस्त रहा करते थे इस प्रक्रिया में Memory के द्वारा और डिस्क के द्वारा Job को पूरा किया जाता था मगर यहाँ मेमोरी में उपस्थित सभी तरह की जॉब्स हमेशा डिस्क में उपस्थित जॉब्स के मुकाबले कम होती थी
यदि टास्क या जॉब एक से अधिक हो जाते थे तब ऑपरेटिंग सिस्टम यह अपने आप सोचता था की किस टास्क को पहले पूर्ण किया जाये और किसे बाद में पूरा किया जाए जबकि सिंगल Batch सिस्टम में CPU कभी कभी उपयोग में आता ही नहीं था जिससे की प्रोसेस लम्बी चलती थी इसलिए इस तरह के सिस्टम में CPU और OS हमेशा काम पर लगे होने के कारण यह प्रोसेस पहले के मुकाबले जल्दी पूरा होने लगा था।
Disadvantages
- इस तरह के सिस्टम में यूजर और OS के बीच में सीधा संवाद नहीं हुआ करता था।
- इस तरह के सिस्टम में पहले दिया हुआ टास्क पहले पूरा होता था और दूसरा टास्क बाद में पूरा होता था।
Desktop System
पहले के समय में एक CPU और PC में ऑपरेटिंग सिस्टम और यूजर के प्रोग्राम को अलग करने के लिए कुछ कमिया थी इसलिए PC और ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत ज्यादा बहुउद्देशीय थे और न ही मल्टी टास्किंग हुआ करते थे उसके बाद जैसे जैसे समय बीतता गया इन सभी ऑपरेटिंग सिस्टम के लक्ष्य में भी बदलाव लाये गए।
इस तरह के सिस्टम में यूजर की सुविधा को देखते हुए ज्यादा फोकस यूजर टास्क पर फोकस किया गया इसलिए इस तरह के सिस्टम को Desktop ऑपरेटिंग सिस्टम कहा जाता है। इस तरह के सिस्टम में Microsoft Windows जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम शामिल थे। बाद में इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम को बहुत ज्यादा एडवांस बनाया गया और आज भी हम इन ऑपरेटिंग सिस्टम में अपडेट देखते है।
Distributed Operating System
इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम को बनाने का मुख्य उद्देश्य संचार प्रणाली और प्रौद्योगिकी में क्रांति लाने के लिए विकसित किया गया था साथ ही साथ इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा संचार प्रणाली के लिए सस्ती और अच्छे से काम करने वाले मइक्रोप्रोसेसर को विकसित करने से था।
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस तरह की प्रगति करने पर बहुत सारे कम्प्यूटर से युक्त डिस्ट्रीब्यूट प्रोसेस को डिज़ाइन और विकसित करना संभव हो चूका था। और यह सभी एक तरह से संचार नेटवर्क की मदद से जुड़े होते थे इस तरह की प्रोसेस में कम कीमत में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन से था।
Distributed Operating System के Advantages
- इसमें एक बहुत सारी प्रोसेस होने के कारण यूजर एक साथ एक साइट पर या एक ही समय में बहुत सारी साइट्स पर सभी मौजूद चीज़ो का उपयोग करने में सक्षम हुआ करते थे।
- इसकी प्रोसेसिंग काफी फ़ास्ट हुआ करती थी।
- मशीन को लोड होने में काम समय लगता था।
Distributed Operating Systems के प्रकार
यह 2 तरह के होते है जो की इस तरह से है –
- Client-Server Systems
- Peer-to-Peer Systems
Client-Server Systems
इस तरह के सिस्टम किसी भी क्लाइंट सिस्टम द्वारा उत्पन्न किसी भी तरह के अनुरोधों को पूरा करने के लिए Server System के रूप में कार्य करता है।
Peer-to-Peer Systems
शुरुवाती के समय जब कम्प्यूटर को विकसिते किया जा रहा था तब किसी भी तरह का इंटरनेट नहीं हुआ करता था या ऐसा कोई भी नेटवर्क नहीं होता था जिससे कम्प्यूटर एक दूसरे के साथ जुड़ सके बाद में जब इंटरनेट का बहुतायत से उपयोग किया जाने लगा तब एक व्यक्तिगत कम्प्यूटर को न बना कर ऐसे कम्प्यूटर को विकसित किया जाने लगा जो नेटवर्क के साथ तालमेल को बिठा सके कुछ इसी तरह पियर तो पियर सिस्टम का विकास होने लगा।
इस तरह के सिस्टम किसी भी तरह से एक दूसरे से जुड़ने के लिए मेमोरी का उपयोग नहीं करते थे बल्कि उसकी वजय इस तरह के सिस्टम नेटवर्क्स का उपयोग करते थे।
Clustered System
इस तरह के सिस्टम एक साथ पक्की तरह से नेटवर्क के द्वारा हमेशा जुड़े हुआ करते थे जिससे की कम्प्यूटर में उपलब्ध जानकारी को बड़े स्टार पर साझा कर पाए।
क्लस्टर सॉफ़्टवेयर की एक लेयर क्लस्टर नोड्स पर काम करती है। इस तरह के सिस्टम में हर एक नोड दूसरे नोड में से एक या अधिक की निगरानी कर सकता था। यदि सिस्टम के द्वारा मॉनिटर की गई मशीन अपना कार्य सही तरह से संपन्न करने में विफल हो जाती है, तो देखरेख करने वाली मशीन अपने स्टोरज को खुद संभाल सकती थी, और उस एप्लिकेशन को वापस से ऑन कर सकती थी जो विफल कार्य वाली मशीन पर चल रहा था।
Asymmetric Clustering – इस में एक मशीन हॉट स्टैंड बाय में होती थी जबकि दूसरी मशीन अप्लीकेशन को रन कर रही होती थी।हॉट स्टैंडबाय मशीन केवल सर्वर की निगरानी का ही काम करती थी जब सर्वर किसी कारण से फ़ैल हो जाता था तो यह मशीन ही सर्वर की तरह काम करने लग जाती थी।
Symmetric Clustering – इस तरह की मशीन में एक या एक से अधिक होस्ट सर्वर ऐप्लीकेशन रन किया करते थे इस तरह की मशीन सिस्टम में उपस्थित सभी हार्डवेयर का उपयोग किया करता था इसलिए यह काफी शक्तिशाली माना जाता था ।
Parallel Clustering – इस तरह की मशीन में एक साथ सभी सर्वर पर डाटा साझा करने की अनुमति देता था इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम एक साथ सभी सर्वर से डाटा को एक्सेस करने में कमजोर पड़ते थे।
Realtime Operating System
इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम को एक वास्तव वाला ऑपरेटिंग सिस्टम माना जाता था इस तरह के सिस्टम के द्वारा Oprations को पुरा करने के लिए अधिक समय तक दिया जाता था इस तरह के सिस्टम सभी महत्वपूर्ण कार्यो को संपन्न करने के लिए अधिक से अधिक समय को लेता था और किसी भी कार्य को सही तरीके से पूरा किया करता था ।
Handheld Systems
इस तरह के सिस्टम से ही आज हम स्मार्टफोन और भी हाथ में पकडे जाने वाले डिवाइस का उपयोग करने में सक्षम हुए है इस तरह के सिस्टम एक छोटी मेमोरी का इस्तेमाल किया जाता था इनमे छोटे प्रोसेसर लगे हुए करते थे और एक साथ एक ही या 2 काम को पूरा किया जाने का काम होता था इस तरह के सिस्टम में छोटी स्क्रीन डिस्प्ले का उपयोग किया जाता था।
इस तरह के सिस्टम में केवल 512KB और 8KB की मेमोरी का उपयोग किया जाता था और किसी भी ऐप्लीकेशन का कार्य हो जाने के बाद मेमोरी को खाली कर देता था।
इस तरह के सिस्टम किसी भी तरह की Vertual मेमोरी का उपयोग नहीं कर पाते थे इसलिए इन्हे उपयोग करने वाले यूजर केवल जितनी मेमोरी इनके अंदर लगाई होती थी उतनी ही मेमोरी का उपयोग कर पाते थे ।
इस तरह के सिस्टम के लिए बहुत ही काम शक्तिशाली प्रोसेसर का उपयोग किया जाता था क्युकी ज्यादा बड़े प्रोसेसर लगाने से इनमे ज्यादा बड़ी बैटरी को लगाना पड़ सकता था जिससे यह डिवाइस काफी बड़े हो जाते थे ।
इस तरह के सिस्टम के लिए प्रोग्राम बनाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था क्युकी एक ऐसा पेज बनाना पड़ता था जो एक छोटी स्क्रीन के हिसाब से सही से लोड हो सके।
ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषताएं
एक OS की बहुत सी विशेस्तए होती है अब तक आपने यह तो पोस्ट में समझ ही लिया होगा की OS किस तरह से काम करता है और हमारे लिए हमारे डिजिटल काम को कितनी तरह से आसान बनाया है अब हम इसकी कुछ विशेस्ताओ के बारे में जान लेते है
- यह हमारे काम को आसान करता है।
- हमारे लिए काम समय में ज्यादा से ज्यादा आउटपुट रिजल्ट तैयार करता है।
- सभी एप्लीकेशन को एक साथ रन कर सकता है जिससे हमें एक साथ बहुत सारे कामो को करने में आसानी होती है।
- किसी भी तरह की त्रुटि होने पर खुद ही उसका समाधान करता है या फिर हमें उसका समाधान बता देता है।
- हम क्या करना चाहते है उसका ध्यान रख कर हमारे अनुरूप कार्य करता है।
ये उपयोगी जानकारी भी जरूर पढ़ें
- VPN क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे करते है।
- PDF क्या है और इसे कैसे बनाते है।
- HTML क्या हैं और इसे कैसे सीखें।
- OTP क्या है और ये क्यों आता है।
- IP Address क्या होता है।
अंतिम शब्द –
दोस्तों उम्मीद करता हु मेरा यह ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है, What is Operating System in Hindi पोस्ट आपको पसंद आया होगा और आपको OS के बारे में काफी जानकारी मिली होगी। यदि आपको हमारे इस पोस्ट से अगर थोड़ी सी भी ऐसी जानकारी प्राप्त हुई हो जो आपको नहीं थी तो प्लीज हमारे इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और इस पोस्ट से संबधित किसी भी तरह का सुझाव या कोई शिकायत हो तो हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताये।
टिप्पणियाँ ( 0 )
देखें